सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेल अधिकारियों को कैदियों के साथ मानवता के साथ पेश आना चाहिए। जाति को कैदियों के बीच विभाजन का आधार नहीं बनाया जा सकता क्योंकि इससे शत्रुता बढ़ेगी।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों की जेलों में जाति आधारित भेदभाव पर बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेलों में जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। कैदियों को सम्मान के साथ न ट्रीट करना उपनिवेशीकरण की धरोहर है। जेलों में बने ये नियम समाप्त किए जाने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेल अधिकारियों को कैदियों के साथ मानवता के साथ पेश आना चाहिए। जाति को कैदियों के बीच विभाजन का आधार नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि इससे शत्रुता उत्पन्न होगी। यहां तक कि कैदी को भी सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है।
कोर्ट ने आगे कहा, भेदभाव सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से हो सकता है। जातिवाद के आधार पर बने पूर्वाग्रह इस भेदभाव को बढ़ावा दे सकते हैं। राज्य की जिम्मेदारी है कि वह इसे रोकें। न्यायालयों को अप्रत्यक्ष और प्रणालीगत भेदभाव के दावों पर फैसला करना चाहिए। जाति आधारित भेदभाव के कारण इतिहास में मानव गरिमा और आत्म-सम्मान को नकारा गया है।
अपने फैसले में कोर्ट ने कहा, अनुच्छेद 17 ने सभी नागरिकों की संवैधानिक स्थिति को मजबूत किया है। कैदियों को सम्मान न देना उपनिवेशी काल का संकेत है, जब उन्हें अमानवीय बना दिया गया था। संविधान में यह अनिवार्य किया गया है कि कैदियों के साथ मानवता के साथ पेश आना चाहिए और जेल प्रणाली को कैदियों की मानसिक और शारीरिक स्थिति का ध्यान रखना चाहिए।
उपनिवेशी काल के आपराधिक कानून आज भी उपनिवेशी काल के बाद की अवधि को प्रभावित कर रहे हैं। संविधानिक समाज के कानूनों को नागरिकों के बीच समानता और सम्मान बनाए रखना चाहिए। जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ लड़ाई एक दिन में नहीं जीती जा सकती। यह फैसला CJI डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने दिया है।
याचिकाकर्ता ने 11 राज्यों के जेल प्रावधानों को चुनौती दी थी क्योंकि ये जाति के आधार पर मैनुअल काम, बैरक का विभाजन और कैदियों की पहचान में भेदभाव करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए ये निर्देश
ऐसे प्रावधानों को असंवैधानिक माना गया है। सभी राज्यों को आदेश दिया गया है कि वे इस निर्णय के अनुसार बदलाव करें। आदतन अपराधियों का उल्लेख आदतन अपराधी अधिनियम के संदर्भ में किया जाएगा और राज्य जेल मैन्युअल में आदतन अपराधियों का सभी संदर्भ असंवैधानिक घोषित किए गए हैं। दोषियों या आरोपी कैदियों के रजिस्टर में जाति कॉलम को हटा दिया जाएगा। इस कोर्ट ने जेलों के अंदर भेदभाव का स्वत: संज्ञान लिया है और रजिस्ट्री को तीन महीने के बाद जेलों के अंदर भेदभाव की सूची प्रस्तुत करने और इस फैसले के अनुपालन की रिपोर्ट राज्य कोर्ट को सौंपने का निर्देश दिया है।