रूस का आरोप है कि यूक्रेन में अस्थिरता के पीछे अमेरिका और यूरोपीय देशों का हाथ है। रूस का मानना है कि अमेरिका और यूरोपीय देश यूक्रेन के माध्यम से उस पर दबाव डालना चाहते हैं। वह चाहता है कि यूक्रेन किसी भी समूह का हिस्सा न बने और पश्चिमी देशों को अपनी ज़मीन पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने से रोके। यही कारण है कि पुतिन की सेना ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला किया।
रूस और अमेरिका के बीच तनाव सालों पुराना है, और यह तनाव द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से बढ़ता ही गया। 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्व युद्ध में दो समूह थे, पहला समूह – फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और सोवियत संघ के सहयोगी देश और दूसरा – जर्मनी, इटली, जापान और ऑस्ट्रिया। हालांकि, इस युद्ध में सहयोगी देशों ने जीत हासिल की।
लेकिन विजय के बाद, अमेरिका और सोवियत संघ के बीच दुनिया में अपनी प्रभुत्व बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई, जो अब तक जारी है। दरअसल, लगभग 8 दशक पहले रूस को सोवियत संघ के नाम से जाना जाता था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, अमेरिका और सोवियत संघ दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश बन गए। दोनों देश चाहते थे कि अन्य देश उनकी शक्ति को मानें और उनका अनुसरण करें। इसके बाद, दुनिया धीरे-धीरे दो समूहों में विभाजित होने लगी, एक समूह जो रूस के करीब था और दूसरा जो अमेरिका का समर्थन करता था।
विचारधारा और प्रभुत्व की लड़ाई!
अमेरिका को सोवियत संघ के खिलाफ ब्रिटेन सहित कई देशों का समर्थन मिला। सोवियत संघ की शक्ति का मुकाबला करने के लिए, इन देशों ने 1949 में नाटो (NATO) का गठन किया। वहीं, सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप के देशों के साथ वारसॉ संधि पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद, दोनों समूहों के बीच हथियारों की होड़ शुरू हो गई। दोनों देश तकनीकी और आर्थिक रूप से एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करते रहे। यह तनाव कई दशकों तक चला, जिसे दुनिया शीत युद्ध के नाम से जानती है।
रूस और अमेरिका के बीच तनाव का कारण
दोनों देशों के बीच तनाव का एक कारण उनकी राजनीतिक विचारधारा भी मानी जाती है। जहां अमेरिका पूंजीवाद का समर्थक रहा है, वहीं रूस वामपंथी विचारधारा में विश्वास करता है। इस विचारधारा की लड़ाई में, दोनों देश कई छोटे और गरीब देशों का सहारा लेते रहे, ताकि वे एक-दूसरे के खिलाफ शीत युद्ध में मदद कर सकें।
क्या नाटो सभी समस्याओं की जड़ है?
जब 90 के दशक में सोवियत संघ का विघटन हुआ, तो दोनों देशों के बीच तनाव कुछ हद तक कम हो गया। सोवियत संघ से अलग होकर रूस, यूक्रेन, बेलारूस, जॉर्जिया और आर्मेनिया सहित 15 नए देश बने। रूस का कहना है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने वादा किया था कि वे नाटो का विस्तार पूर्व की ओर नहीं करेंगे, लेकिन अब यह वादा तोड़ा जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में, यूक्रेन सहित कुछ देश अमेरिका और नाटो के प्रभाव में आ रहे थे, जिससे रूस आक्रामक हो गया। यही कारण है कि रूस और अमेरिका के बीच फिर से तनाव बढ़ गया है।
वहीं, यूक्रेन के साथ उसके तनाव का मुख्य कारण भी यूक्रेन की नाटो देशों के साथ निकटता मानी जाती है। यूक्रेन कभी सोवियत संघ का हिस्सा था और यह रूस के साथ सीमा साझा करता है। दोनों देशों के बीच लगभग 2000 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है। ऐसे में अगर नाटो का प्रभाव यूक्रेन में बढ़ता है, तो रूस के अनुसार यह उसके लिए खतरा हो सकता है। इसके अलावा, रूस एक बार फिर से खुद को सोवियत संघ की तरह मजबूत बनाना चाहता है, वह यूक्रेन के कई क्षेत्रों को रूस का हिस्सा मानता है और इन क्षेत्रों को हासिल करने के लिए उसने कई बार यूक्रेन पर हमला भी किया है।
रूस-यूक्रेन विवाद के मुख्य कारण
माना जाता है कि इन हमलों के माध्यम से रूस यूक्रेन को यह बताने की कोशिश करता है कि अगर उसने नाटो में शामिल होने की कोशिश की, तो इसके परिणाम उसके लिए बुरे होंगे। रूस यह भी जानता है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हो जाता है, तो उसके लिए यूक्रेन पर हमला करना न केवल मुश्किल बल्कि असंभव हो जाएगा क्योंकि नाटो देशों के बीच एक समझौता है कि अगर उन पर किसी अन्य देश द्वारा हमला किया जाता है, तो वे सभी एकजुट होकर उसकी रक्षा के लिए जवाब देंगे। इसलिए, रूस किसी भी कीमत पर यूक्रेन को नाटो का हिस्सा नहीं बनने देना चाहता। वहीं, अमेरिका का कहना है कि रूस या कोई अन्य देश यूक्रेन की नाटो में शामिल होने की इच्छा को नहीं रोक सकता, वर्तमान में नाटो की नीति ‘सबके लिए दरवाजे खुले रखना’ है, और वह इस नीति से पीछे हटने वाला नहीं है।
यूक्रेन क्यों नाटो में शामिल होना चाहता है?
वर्तमान में नाटो में 30 देश शामिल हैं, यूक्रेन ने पहली बार 2008 में इसमें शामिल होने के लिए आवेदन किया था, लेकिन 2010 में यूक्रेन के प्रो-रूस राष्ट्रपति यानुकोविच ने इसे रोक दिया। नाटो अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, ब्रिटेन सहित कई देशों का एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो एक-दूसरे की आर्थिक और सैन्य रूप से मदद करते हैं। यूक्रेन का मानना है कि अगर वह नाटो का हिस्सा बनता है, तो रूस की आक्रामकता और प्रभाव को कम किया जा सकता है। यही कारण है कि यूक्रेन ने एक बार फिर नाटो में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की, जो रूस के आक्रामक रुख के कारण फिलहाल पूरी होती नहीं दिख रही है।
रूस-यूक्रेन संबंध 2014 से खराब हुए?
यूक्रेन का मतलब है सीमा क्षेत्र, इसका क्षेत्रफल लगभग 603,600 वर्ग किलोमीटर है, जो रूस और यूरोप के बीच स्थित है। यूक्रेन की विदेश नीति पूरी तरह से लोकतांत्रिक और स्वतंत्र रही है, लेकिन यह अमेरिका और नाटो देशों से काफी प्रभावित रहा है। हालांकि, पूर्व यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को रूस का समर्थक माना जाता था। उन्होंने 2013 में यूरोपीय संघ के साथ आर्थिक एकीकरण की योजना को रद्द करने का निर्णय लिया, जिसका भारी विरोध हुआ।
राजधानी कीव में विरोध प्रदर्शन हुए। इस दौरान, 2014 में यूक्रेनी सेना ने यानुकोविच के खिलाफ बगावत भी शुरू कर दी, जिसके बाद उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा। माना जाता है कि यहीं से रूस और यूक्रेन के बीच संबंध और भी कड़वे हो गए।
अमेरिका-पश्चिमी देशों पर रूस के आरोप
रूस का आरोप है कि यूक्रेन में अस्थिरता के पीछे अमेरिका और यूरोपीय देशों का हाथ है। रूस का मानना है कि अमेरिका और यूरोपीय देश यूक्रेन के माध्यम से उस पर दबाव डालना चाहते हैं। वह चाहता है कि यूक्रेन किसी भी समूह का हिस्सा न बने और पश्चिमी देशों को अपनी ज़मीन पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने से रोके। यही कारण है कि पुतिन की सेना ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला किया।
इससे पहले, 2014 में, रूस ने यूक्रेन पर हमला करके क्रीमिया के एक हिस्से को छीन लिया था। इस दौरान, यूक्रेन के कई हिस्सों में रूस समर्थकों की संख्या बढ़ने लगी, इनमें से दो राज्य डोनेट्स्क और लुहांस्क हैं, जिन्हें रूस ने स्वतंत्र रूप से मान्यता दी है। वहीं, रूस और यूक्रेन के बीच लगभग ढाई साल से चल रहे युद्ध का अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। हालांकि, अमेरिका और नाटो देशों ने इस युद्ध में यूक्रेन की मदद हथियारों और रूस पर प्रतिबंधों के जरिए जरूर की है, लेकिन यूक्रेन को अकेले ही युद्ध लड़ना पड़ रहा है, जिसमें उसके कई शहर बर्बाद हो गए हैं और सैकड़ों लोग मारे गए हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान दुनिया भर में कई बार सवाल उठे हैं कि क्या पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को रूस के सामने अकेला छोड़ दिया है? क्या यूक्रेन को वर्चस्व की लड़ाई में ‘बलि का बकरा’ बनाया जा रहा है?
वर्तमान में इन सवालों का कोई सीधा जवाब नहीं है, लेकिन यह जरूर निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यूक्रेन को अमेरिका और पश्चिमी देशों के करीब होने की कीमत चुकानी पड़ रही है, जबकि असली लड़ाई अभी भी रूस और अमेरिका के बीच विश्व में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए हो रही है।
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